Kya kahu - 1 in Hindi Love Stories by Sonal Singh Suryavanshi books and stories PDF | क्या कहूं...भाग - १

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क्या कहूं...भाग - १

पतझड़ का महीना था। कभी कभी हवाएं बहती तो ठंड से तन सिहर उठता। रोज की तरह विवान अपने छत पर सूर्योदय देखने के लिए आया था। आज सूर्योदय तो हो चुका था पर उसकी आंखें नीम के पेड़ पर जा ठहरी। जोर हवा चलने से कभी कभी उसके पत्ते झड़ रहे थे। एकटक बहुत देर तक वो देखते रहा। उसके चेहरे पर उदासी का भाव झलक रहा था। पत्ते तो वापस वसंत में आ जाएंगे पर गुजरा दिन, गुजरे लोग वापस नहीं आएंगे तभी उसकी मां काॅफी लेकर आई।

आज इतनी देर छत पर....तभी उसकी नजर विवान के उदास चेहरे पर पड़ती है।

"विवू! क्या हुआ ?" उसको हिलाती है।

"कुछ नहीं मां, बस कुछ सोच रहा था।" विवान मुस्कुराते हुए बोला।

मां - "मुझसे मत छिपा, तू खुश नहीं हैं ना ?"

विवान - नहीं मां, कल अस्पताल में एक सीरियस केस आया था बस वही सोच रहा था।

मां - ठीक है। तेरे पापा बोल रहे थे कि हमें लड़की देखना चाहिए। तू कहे तो हां कह दूं?

"अभी नहीं मां, मुझे बहुत काम है।" विवान थोड़ा देर चुप रहा फिर उसने बात बदलते हुए कहा।

मां उसके तरफ देखती है। विवान भी समझ चुका था। उसकी आंखें भर आती है।

"सुनीता! तुम्हारा फोन बज रहा है। कहां हो?" विवान के पापा नीचे से आवाज दे रहे थे।

"चल तेरे पापा के साथ काॅफी पी लेना और अकेले मत रहा कर" दोनों नीचे आ जाते हैं।

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नाश्ते के टेबल पर राजवर्धन खा रहे थे। तभी विवान भी अस्पताल जाने के लिए तैयार होकर आ गया। सुनीता ने राजवर्धन को सुबह के बारे में बता दिया था। इसलिए वो शादी की बात नहीं करते।

"आजकल बहुत व्यस्त हो ?" राजवर्धन ने पूछा

विवान - जी पापा।

"एम.डी. हो फिर भी इतना व्यस्त ?"

विवान - सरकार की नई स्वास्थ योजना चल रही है, खुद सबकुछ देख रहा हुं इसलिए। आॅफिस में कैसा चल रहा सबकुछ ? मां बोली रही थी कोई नए बिल्डर से आप काॅन्ट्रैक्ट साइन कर रहे।

राजवर्धन - हां बात तो चल रही है। अभी फाइनल नहीं हुआ है।

दोनों नाश्ता करके अपने काम पर चले जाते हैं। मां भी घर के काम में लग जाती है। घर में दो नौकर भी थे। एक ड्राइवर भी रहता था।

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दोपहर को सुनीता अपनी बेटी समृद्धि से बात कर रही थी। बेटी की शादी एक साल पहले इंदौर में हुई थी। उसके ससुराल वाले भी अच्छे परिवार से थे। पति रियल स्टेट बिजनेसमैन थे।

"विवान से बात हुई?"

"बात तो हुई पर अभी वो तैयार नहीं"

"क्या विवान अब भी उसे याद करता है" समृद्धि ने हिचक कर पूछा

हां बेटा, आज फिर से उसकी आंख भर आई।

मां! आप उसे समझाओ। उसकी शादी होगी एक नई जिंदगी की शुरुआत करेगा तभी वो भूल पाएगा।

"हां बेटा, ठीक कह रही है तू"

फिर कुछ देर दोनों बाते करके फोन रख देती है।

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रात्रिभोजन करने के बाद विवान अपने कमरे में बैठा कुछ काम कर रहा था। तभी उसकी मां आती है।

"कभी आराम भी कर लिया कर"

"मां आओ बैठो।" कुछ काम है ?

"बस, सोची तुझसे कुछ बात कर लूं।"

"कहो ना"

"बेटा, तेरे पापा ने एक लड़की देखी है। अच्छी है। तू देखेगा ? तू नहीं चाहता आगे बढ़ना ? काम में व्यस्त रहते हुए भी तू खुश नहीं हैं। अपना हमसफर किसी को बना लें। तेरी खुशी चाहती हुं बच्चा। तू अंदर ही अंदर कबतक उदास रहेगा ?

विवान कुछ देर चुप होकर फिर कहता है

"ठीक है मां। मैं शादी के लिए तैयार हुं।"

"ना कामयाब हुए तेरा प्यार पाने में
ना कामयाब हुए तुझे भूल जाने में।
अब तो लोग भी मुझसे कहने लगे है
कि मेरी खुशी है आगे बढ़ जाने में।।"